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आत्मा का खोल बाबा फरीद जी के बहुत सारे मुर्रीद थे।और अक्सर उनके मुर्रीद सत्संग सुनने बाबा जी के पास आया करते थे।एक बार हज़रत सत्संग कर रहे थे। तभी एक शिष्य ने उठ कर बाबा जी से प्रशन किया के बाबा जी मैंने आपके कई सत्संगों में सुना है।के जब सच्चे फ़क़ीरों को तानाशाहो द्वारा अलग अलग तरह की यातनायें दी गयी तब उनकी हालत इसके बिल्कुल विपरीत थी। जैसे प्रभु यीशु के हाथों में जब कील गाड़ दी गयी।उनके सिर पर कांटो का ताज पहना कर पुरे गाँव का चक्कर लगवाया गया तब प्रभु यीशु के मुंह से ये वचन कैसे निकले के ""हे परमपिता यह सब लोग सच्चाई से अनजान है।इन्हें नहीं पता के यह क्या कर रहे है इनको माफ़ कर देना।और फिर आपने एक सत्संग में मनसूर का वाकया भी सुनाया था।के मन्सूर को जब सूली पर चढ़ा रहे थे।तो उन्होंने जल्लाद को देख कर कहा था।के ऐ अल्लाह मैंने तुमको पहचान लिया है।आज तू इस जल्लाद के रूप में आया है।मुर्रीद ने कहा के ऐ मेरे मुर्शद मेरा सवाल यह है के ऐसी अवस्था में इंसान या तो गुस्से से भर जायेगा या डर जायेगा।मगर इनकी हालत तो कुछ और ही है। इस पर बाबा फरीद जी ने उस मुर्रीद को एक कच्चा नारियल देकर कहा की इसको फोड़ दो मगर ध्यान रहे के इसके अंदर का हिस्सा (गिरी) नहीं टूटनी चाहिए।इस पर मुर्रीद ने कहा हज़रत नारियल कच्चा है।अगर चोट मारूँगा तो अवश्य अंदर का हिस्सा टूट जायेगा।फिर बाबा जी ने कहा कोई बात नहीं तुम पका हुआ नारियल ले आओ।बाबा फरीद जी ने कहा के अब तो अंदर का हिस्सा बच जायेगा ना।मुर्रीद ने कहा जी बिल्कुल पके नारियल को फोड़ने से अंदर का हिस्सा बच जायेगा।सत्संग में बैठे हुए सब लोग ये देख रहे थे।जब वोह मुर्रीद उस नारियल को तोड़ने लगा तो बाबा जी ने कहा रुक जाओ कुछ नहीं तोडना है।बाबा जी ने कहा के मैंने जो कुछ कहा क्या काफी नहीं था।क्या समझ में नहीं आया।मुर्रीद ने कहा हज़रत मैं तो मूर्ख हु आप दया करो।।बाबा जी ने कहा के देखो बेटा जब नारियल कच्चा होता है तो नारियल का खोल अंदर के हिस्से से चिपका होता है।कुछ समय बाद गिरी और खोल धीरे धीरे अलग हो जाते है।और फिर खोल पर की गयी चोट गिरी तक नहीं पहुंचती। ऐसे ही आत्मा गिरी है तो शरीर उसका खोल है।संत,, महात्मा,,पीर पैगम्बर,,अपने जीवन में अभ्यास करके इस शरीर के खोल को आत्मा से अलग कर लेते है। और फिर धर्मराज के द्वारा भेजा हुआ यम रूपी हथौड़ा शरीर पर तो मार करता है।पर आत्मा को स्पर्श नहीं कर पाता।जिससे आत्मा निर्भय हो जाती है।और मौत का डर खत्म हो जाता है।और अभ्यास से परमात्मा का इश्क़ आत्मा में उतर जाता है।और द्वैत खत्म हो जाती है।जिससे हर प्राणी में परमात्मा नज़र आता है।और अगर हर प्राणी में परमात्मा है तो फिर कोई उनसे नफरत क्यों करेगा।इसीलए संत हमेशा परमात्मा से संसार के लिए माफ़ी और दया मांगते है। आए हम भी बाबा फरीद जी की इस सीख से फायदा उठाये।और अपने संत सतगुरु के दिए हुए सिमरन का अभ्यास करके हम भी इस खोल को गिरी से अलग करें।ताकि हमारे अंदर मौत के डर और मौत के समय होने वाली पीड़ा से बच जाये। कबीरा। जब हम आये जगत में जग हँसे हम रोये। ऐसी करनी कर चलें।हम हँसे जग रोये।।

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