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जे तैनू यार मिलन दी चाह ,सिर धर हथेली गली मेरी आ !

बाबा फरीद रोज अपने गुरू को स्नान कराने के लिए पानी गर्म करते थे !
एक दिन बहुत बरसात हुई वो लकडी को जलता छोड गए पर बहुत बरसात होने से आग बुझ गई !वो बहुत परेशान हुए कि आज मैं अपने मुर्शिद को कैसे स्नान करवाँऊंगा !
फरीद जी उस समय के बहुत सुन्दर पुरूष थे ;एक वेश्या की उन पर नजर थी !वेश्या ने अपनी काम वासना पूरी करने के लिए फरीद जी को उकसाने के बहुत प्रयत्न किए पर सब बेकार गये !
जब काम वासना पूरी ना हो तो वो व्यक्ति दुश्मन बन जाता है !वेश्या अब फरीद जी को नुकसान पहुँचाना चाहती है उनका अहित करना चाहती है !
फरीद जी आग की खोज में बहुत दूर तक निकल गए पर आग नही मिल पाई !उन्होने देखा कि वही वेश्या हुक्का पी रही है ;वो मुँह को ढक कर उसके पास गए जिससे कि वो उन्हे ना पहचान सके पर वेश्या ने उन्हे पहचान लिया !वेश्या ने सोचा उसका शिकार खुद ही उसके पास आ गया है!
फरीद जी बोले -मुझे एक अंगारा चाहिए !वेश्या ने कहा -पर इसके लिए तुम्हे कीमत चुकानी पडेगी !फरीद जी ने कहा -जो तुम कहोगी मुझे सब मंजूर है !वेश्या बोली -मेरी हथेली पर अपनी आँख निकालकर रख दे ;उन्होने ऐसा ही किया और अंगारा लेकर चल पडे पर बहुत खून बह रहा था !फरीद जी ने अपनी पगडी को नीचे आँख की ओर कर लिया और अपने गुरू के पास जा पहुँचे !
गुरू ने कहा -ये पगडी कैसे बाँधी है ? फरीद जी ने कहा -मेरी आँख आ गई है !थोडी देर के बाद गुरू ने फिर पूछा तो फरीद जी बोले -कहा ना आँख आ गई है !गुरू जी बोले -आँख आ गई है तो पगडी उतार !
पगडी उतारी तो देखा आँख सच में आ गई !यही है गुरू के प्रति श्रद्धा और यही है गुरू कृपा !

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