![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY2LIAgq9uDAuZyy0R3GDxgemPTv_UgDBuxKBIg8n1Pd72lVFnh7VHJXUo7bYwnjje67V2-2mePOmSRNO_4CwcbQ54YWab968Y_i4Ywonr2-_og-1RZlhdOJMLX4kFHTeqqU9Oyulgbg62/s200/Bulleh-Shah.jpg)
एक दिन वेश्या शाह इनायत के यहाँ कव्वाली के लिए जाने लगी तो बुल्लेशाह ने उससे कहा कि अपने कपड़े मुझे दे दो तेरी जगह में कव्वाली करूँगा । बुल्लेशाह वहां पहुँचे व गाना शुरु कर दिया ।" चेहरे पर घूँघट था । गाने के साथ नाचने भी लगे ...........................
तेरे प्यार ने नचइया , तेरे इश्क ने नचइया । छईयां छईयां
दिल में दर्द हो तो जबान में भी तासरीर होती हैं, बाहर से कितनी ही बनावट करो बात नहीं बनती । जिसके दिल में विरह हैं तो उसकी जबान भी दर्द भरी होगी । बुल्लेशाह ने अपने गाने में सारा दर्द उडेल दिया । उठकर वेश्या को गले लगा लिया । लोग शाह इनायत के इस क्रत्य पर आश्चचर्यचकित थे कि ये क्या हो गया ? शाह इनायत ने कहा कि भाई बुल्ले अब तो पर्दा उठा दे । बुल्ले ने चरणों में गिरकर कहा कि में बुल्ला नहीं भुल्ला हूँ अथार्त भूला हुआ हूँ ।
गुरु का खुश होना है भारी , सतपुरूष निज क्रपाधारी ।
गुरू प्रसन्न हो जा ऊ पर , वहीं जीव सबके ऊपर ॥
अपमान से बड़ी चीज उनकी रूहानी तरक्की छिन गयी थी, बन्द हो गयी थी । साधको की साधना रूक जाये जो दिखाई सुनाई पड़ता है वह बन्द हो जाए तो ऐसी विरह तड़प पैदा होती हैं कि मरना बेहतर समझते हैं तो वे वेश्या के यहाँ गये और गाना सीखने लगे । कुछ दिन बीत गये , लगन से काम किया जाये तो सफलता जल्दी मिलने लगती हैं । बुल्लेशाह एक अच्छे गायक बन गये और नाचने वाले भी । गुरु के प्यार ने इस स्तर पर पहुँचा दिया कि सारी लोकलज्जा कुल की मर्यादा सब समाप्त हो गयी । गुरु खुश हो जाये बस और कुछ नहीं चाहिए ।
0 टिप्पणियाँ