बुल्लेशाह एक फकीर हुए हैं , उनके गुरु शाह इनायत साहब थे। पूर्ण पुरुष मिले थे, लोग महात्माओ के चरणों में जाते हैं तो लोक-लाज से बंधे हुये जाते हैं । एकदिन बुल्लेशाह के यहाँ कुछ नाचने वाले को गुरु साहब ने भेज दिया । बुल्लेशाह के सम्मान को धक्का लगा । लोगों ने ताना दिया कि तुम्हारे गुरु भाई तुमसे मिलने आये हैं। बुल्लेशाह ने लोक-लाज के डर से कहा कि ये सब मेरे भाई नहीं हैं। लोटने पर नाचने वालों ने सारी बात शाह इनायत को बता दी। गुरुजी ने कहा कि कोई बात नहीं । बुल्लेशाह साधना करते थे और रसोई भी अच्छी थी। उस दिन से उनकी रूहानी तरक्की बन्द हो गयी वे बड़े परेशान हुए । गुरु भी इनके प्रति उदासीन दिखाई पड़ने लगे तो खूब रोए । सोचा कि अब क्या किया जाय ? गलती मालूम हो गयी थी । परमार्थ के रास्ते पर चलने वाले को अहंकार मिटाना पड़ता हैं, लोक-लाज समाप्त करनी पड़ती हैं । तानाकशी बर्दाश्त करनी पड़ती हैं ।गुरू को खुश करना आसान बात नहीं थी । उन्होंने देखा कि शाह इनायत को गाना पसंद था । बुल्लेशाह ने मुराशत को खुश करने के लिए कंजरो से गाना सीखना शुरू कर दिया । माना
एक दिन वेश्या शाह इनायत के यहाँ कव्वाली के लिए जाने लगी तो बुल्लेशाह ने उससे कहा कि अपने कपड़े मुझे दे दो तेरी जगह में कव्वाली करूँगा । बुल्लेशाह वहां पहुँचे व गाना शुरु कर दिया ।" चेहरे पर घूँघट था । गाने के साथ नाचने भी लगे ...........................
तेरे प्यार ने नचइया , तेरे इश्क ने नचइया । छईयां छईयां
दिल में दर्द हो तो जबान में भी तासरीर होती हैं, बाहर से कितनी ही बनावट करो बात नहीं बनती । जिसके दिल में विरह हैं तो उसकी जबान भी दर्द भरी होगी । बुल्लेशाह ने अपने गाने में सारा दर्द उडेल दिया । उठकर वेश्या को गले लगा लिया । लोग शाह इनायत के इस क्रत्य पर आश्चचर्यचकित थे कि ये क्या हो गया ? शाह इनायत ने कहा कि भाई बुल्ले अब तो पर्दा उठा दे । बुल्ले ने चरणों में गिरकर कहा कि में बुल्ला नहीं भुल्ला हूँ अथार्त भूला हुआ हूँ ।
गुरु का खुश होना है भारी , सतपुरूष निज क्रपाधारी ।
गुरू प्रसन्न हो जा ऊ पर , वहीं जीव सबके ऊपर ॥
अपमान से बड़ी चीज उनकी रूहानी तरक्की छिन गयी थी, बन्द हो गयी थी । साधको की साधना रूक जाये जो दिखाई सुनाई पड़ता है वह बन्द हो जाए तो ऐसी विरह तड़प पैदा होती हैं कि मरना बेहतर समझते हैं तो वे वेश्या के यहाँ गये और गाना सीखने लगे । कुछ दिन बीत गये , लगन से काम किया जाये तो सफलता जल्दी मिलने लगती हैं । बुल्लेशाह एक अच्छे गायक बन गये और नाचने वाले भी । गुरु के प्यार ने इस स्तर पर पहुँचा दिया कि सारी लोकलज्जा कुल की मर्यादा सब समाप्त हो गयी । गुरु खुश हो जाये बस और कुछ नहीं चाहिए ।
एक दिन वेश्या शाह इनायत के यहाँ कव्वाली के लिए जाने लगी तो बुल्लेशाह ने उससे कहा कि अपने कपड़े मुझे दे दो तेरी जगह में कव्वाली करूँगा । बुल्लेशाह वहां पहुँचे व गाना शुरु कर दिया ।" चेहरे पर घूँघट था । गाने के साथ नाचने भी लगे ...........................
तेरे प्यार ने नचइया , तेरे इश्क ने नचइया । छईयां छईयां
दिल में दर्द हो तो जबान में भी तासरीर होती हैं, बाहर से कितनी ही बनावट करो बात नहीं बनती । जिसके दिल में विरह हैं तो उसकी जबान भी दर्द भरी होगी । बुल्लेशाह ने अपने गाने में सारा दर्द उडेल दिया । उठकर वेश्या को गले लगा लिया । लोग शाह इनायत के इस क्रत्य पर आश्चचर्यचकित थे कि ये क्या हो गया ? शाह इनायत ने कहा कि भाई बुल्ले अब तो पर्दा उठा दे । बुल्ले ने चरणों में गिरकर कहा कि में बुल्ला नहीं भुल्ला हूँ अथार्त भूला हुआ हूँ ।
गुरु का खुश होना है भारी , सतपुरूष निज क्रपाधारी ।
गुरू प्रसन्न हो जा ऊ पर , वहीं जीव सबके ऊपर ॥
अपमान से बड़ी चीज उनकी रूहानी तरक्की छिन गयी थी, बन्द हो गयी थी । साधको की साधना रूक जाये जो दिखाई सुनाई पड़ता है वह बन्द हो जाए तो ऐसी विरह तड़प पैदा होती हैं कि मरना बेहतर समझते हैं तो वे वेश्या के यहाँ गये और गाना सीखने लगे । कुछ दिन बीत गये , लगन से काम किया जाये तो सफलता जल्दी मिलने लगती हैं । बुल्लेशाह एक अच्छे गायक बन गये और नाचने वाले भी । गुरु के प्यार ने इस स्तर पर पहुँचा दिया कि सारी लोकलज्जा कुल की मर्यादा सब समाप्त हो गयी । गुरु खुश हो जाये बस और कुछ नहीं चाहिए ।
0 टिप्पणियाँ