न काहू से वैर
कबीर न किसी के दोस्त थे,न दुश्मन | उनके लिए सब उनके अपने थे| क्योंकि उन्हें मालूम था कि सब एक ही ईशवर की संतान हैं, सब में एक ही परमात्मा अपने अंश रुप में विद्धमान है|
तभी तो वे कहते हैं―
'राम–रहीम एक हैं, नाम धराया दोय |
कहे कबीरा दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय ||
कबीर को किसी से कुछ नही चाहिए था , वे देने आये थे लोगों को –ज्ञान का संदेश, विवेकशीलता,भाईचारा , लेकिन इसके बावजूद अनेक लोग उनके दुश्मन बन गए थे
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