दोपहर का वक्त था । शाहजहाँ बादशाह को प्यास लगी । इधर - उधर देखा , नोकर कोइ पास नही था। उस समय पानी की सुराही भरी हुई पास ही रखी होती थी । उस दिन सुराही में पानी एक घूंट भी न था। कुए पर पुहंचा, और पानी निकालने लगा। जैसे ही आगे को झुक कर देखा भोनी उसके माथे में लगी । कहता है ."शुक्र हैं ! शुक्र हैं ! मेरे जैसे बेवकूफ को जिसको पानी भी नहीं निकालना आता, मालिक ने बादशाह बना दिया। शुक्र नही तो और क्या है ? मतलब यह कि दुःख में भी उसने मालिक का शुक्र मनाया ।
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