लगभग पांच हज़ार साल पहले पांडवों द्वारा निर्मित
बिलकेश्वर मंदिर में हर रोज भगवान भोले के सैकडों भक्त पूजा-अर्चना करते है । लोगों में मान्यता है कि भगवान शिव का अमरनाथ, मणिमहेश के अलावा अपने बिलावर धाम में वास होता है । भगवान शिव की इस प्राचीन र्पिंडी की स्थापना भगवान कृष्ण ने करवाई थी जब पांडवों ने अपने अज्ञातवास के अंतिम चरण में बिलकेश्वर मंदिर का निमणि किया था ।
मंदिर का इतिहास - Bilkeshwar Mahadev Temple History
प्राचीन मान्यता के अनुसार बिलकेश्वर मंदिर का निर्माण पांच हजार साल पहले पांडवों ने अपने अझातवास के दोरान किया था । प्राचीन दंतकथा है कि जब बिलकेश्यर मंदिर बिलावर का पांडव निर्माण कर रहे थे और हनुमान जी बिलावर में गंगा को लाने में लगे हुए थे तब छह महीने वाली अवधि की एक रात हुई थी । इसका पता तब चला था जब सरसों का तेल निकलने के लिए तेली ने छह महीने के स्टॉक को एक ही रात में निचोड़ दिया था । तब वह चिल्लाया कि छह महीने की रात हो गई । तब तक मंदिर का निर्माण पूरा हो गया था और हनुमान की बिलावर में गंगा को लाने का काम कर रहे थे । उसी शिला में अंतध्यान हो गए जो आज भी नाज दरिया में लोगों की आस्था का केंद्र है । बिलावर नगर के बीचो-बीच होने के कारण सुबह-शाम मंदिर में पूजा करने वालों की भीड़ रहती है । सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं । शाम सात बजे रात की आरती होती है । सावन महीने में बिलकेश्वर मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ी रहती है । महाशिवरात्रि हो या हर महीने ज्येष्ठ सोमवार, पांडवों द्वारा बनाए गए मंदिर में हजारों भक्त पहुंचते है । सावन और बैसाख माह में मंदिर के दर्शनों का क्रम पूरे महीने चलता है ।
कठुआ जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिलावर उपमंडल क मुख्यालय पर बाजार में स्थित है बिलकेश्वर मंदिर , जो जम्मू से करीब 120 किलोमीटर दूर है । नेशनल हाईवे दियालाचक से बिलावर क लिए निजी बस नियमित मिलती है । बिशेष पर्व पर इस मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था देखते ही बनती है । मंदिर में भोले शंकर पिंडी रूप मॅ विराजमान हैं । कहते हैं कि बिलावर में बेल क जंगल सबसे
ज्यादा हुआ करते थे । इसके बीच मंदिर होने के कारण इसे बिलकेश्वर नाम दिया गया है ।
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