🌹🌹रक्षाबंधन का पर्व प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है. राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
चंद्र प्रधान श्रवण नक्षत्र युक्त यह पावन पर्व स्वतंत्रता दिवस सहित 15 अगस्त, दिन गुरुवार को बहुत धूम-धाम से मनाया जाएगा.
यह पर्व भद्रा युक्त नहीं है... भद्रा दोष से मुक्त इस बार यह पर्व का मुहूर्त पुरे दिनभर रहेगा...
विशेष मुहूर्त श्रवण नक्षत्र युक्त सूर्योदय 05.47 से प्रातः 08.02 तक है...
रक्षाबंधन पर लगभग 13 घंटे तक शुभ मुर्हूत रहेगा। जोकि पूर्णिमा समाप्ति समय संध्या 06.01 तक रहेगा... दोपहर 02.02 से 03.41 तक राखी बांधने का विशेष फल मिलेगा।
चंद्र प्रधान श्रवण नक्षत्र का संयोग बहुत ख़ास रहेगा। सुबह से ही सिद्धि योग बनेगा जिसके चलते पर्व की महत्ता ओर अधिक बढ़ेगी।
राशि आधार पर भी जानते है... क्या शुभ रहेगा.. जिससे भाइयों की शुभता बढे.....
मेष 🌴
मालपुए खिलाएं एवं लाल डोरी से निर्मित राखी बांधे।
वृषभ 🌴
दूध से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं सफेद रेशमी डोरी वाली राखी बांधे।
मिथुन 🌴
बेसन से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं हरी डोरी वाली राखी बांधे।
कर्क 🌴
रबड़ी खिलाएं एवं पीली रेशम वाली राखी बांधे।
सिंह 🌴
रस वाली मिठाई खिलाएं एवं पंचरंगी डोरे वाली राखी बांधे।
कन्या 🌴
मोतीचूर के लड्डू खिलाएं एवं गणेशजी के प्रतीक वाली राखी बांधे।
तुला 🌴
सूजी का हलवा या घर में निर्मित मिठाई खिलाएं एवं रेशमी हल्के पीले डोरे वाली राखी बांधे।
वृश्चिक 🌴
गुड़ से बनी मिठाई खिलाएं एवं गुलाबी डोरे वाली राखी बांधे।
धनु 🌴
रसगुल्ले खिलाएं एवं पीली व सफेद डोरी से बनी राखी बांधे।
मकर 🌴
मिठाई खिलाएं एवं मिलेजुले धागे वाली राखी बांधे।
कुंभ 🌴
हरे रंग की मिठाई खिलाएं एवं नीले रंग की राखी बांधे।
मीन 🌴
मिल्क केक खिलाएं एवं पीले-नीले जरी की राखी बांधे।
रक्षासूत्र बांधते समय एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाए तो शुभता के परिणाम में बढ़ोतरी होती है....
येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल: मा चल:
🌞यह रक्षा पर्व आपके जीवन में हमेशा खुशहाली भरा रहे... जीवन की हर बाधा दूर हो... ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है...
विशेष : समय मेरठ (उत्तर प्रदेश) समयानुसार है... स्थानीय समय में दो - चार मिनट का अंतर संभव है...
अरविन्दर सिंह ‘शास्त्री’ (मेरठ)
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