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पीरबाबा सांई रोडा की दरगाह - Dargah Peer Baba Rode Shah Ji

पीरबाबा सांई रोडा की दरगाह - Dargah Peer Baba Rode Shah Ji


मंदिरों का शहर कहे जाने वाले जम्मू शहर में मात्र मंदिर ही नहीं पीरों पैगंबरों की भी असंख्य दरगाहे है जिनमें हर धर्म की लोगों की अटूट आस्था है लेकिन शहर के अधिकतर लोग नहीं जानते है कि सुर्य पुत्री तवी नदी के बीचों बीच एक दरगाह ऐसी है जहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यह दरगाह है पीरबाबा सांई रोडा जी की। इस दरगाह को लेकर मान्यता है कि तवी नदी में आने वाली बाढ़ भी इस दरगाह को कुछ नुक्सान नहीं पहुंचाती है ।


 जबकि वर्ष 2014 में जब तवी नदी में भयानक सेलाब आया था तो आसपास के कई घर इसमें बह गए, लोगों का माल मवेशी तक तवी में बह गया पर उस बाढ़ का पानी भी इस दरगाह तक नहीं चढ़ा और दरगाह के दोनों तरफ से पानी ऐसे निकल गया कि मानों बाढ़ में उफनती तवी नदी न होकर तवी कोई शांत जलधारा की नदी हो। यह कारनामा देख लोगों की आस्था इस दरगाह में और मजबूत हो गई।


 इस दरगाह पर जाने के लिए कोई मार्ग नहीं है जहां पहुंचने के लिए तवी नदी के बीच से गुजरकर जाना पड़ता है। यहां पहुंचने के लिए पीरखो स्थित जामवंत गुफा के पास तवी नदी की तरफ जाने वाले रास्ते से नीचे उतरकर आगे नदी के पानी को पार करके फिर करीब सवा किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद इस दरगाह तक पहुंचा जा सकता है। तवी की रेत और पत्थरों से गुजरते हुए सरूड़ की झाड़ियों के बीच से रास्ता बनाते हुए जाना पड़ता है।


 जबकि उमस भरी गर्मी में इस रास्ते पर चलना काफी मुश्किल लगता है पर जैसे ही दरगाह पर भक्त पहुंचते है तो वहां पर दरगाह के चारों और लगे पेड़ों की शीतल छाया व ठंडी हवाएं मौसम का एक अलग ही एहसास करवाती है। दरगाह पर पहुंचने पर भक्त गर्मी को भूल जाते है और तवी नदी के बिलकुल बीच में बने इस शांत वातावरण में पीरबाबा सांई रोडा जी की दरगाह लोगों में सहज की आस्था भर देती है। पक्षियों की आवाजें और आसपास तवी नदी में घास को चरती भैंसे शहरी चकाचैंद से दूर एक अलग सा ही एहसास कराती है।


 स्थानीय लोगों की माने तो करीब 400 वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक सूफी संत रहा करते थे जो कि एकांतवास में ही रहना पसंद करते थे लेकिन अगर कोई राहगीर कभी उनसे कुछ मांग लेता तो वो उसे तत्काल वो वस्तु दे देते। समय बीता तो उन सूफी संत का नाम बाबा सांई रोडा बताया गया और उनके देह त्यागने के बाद जहां उनकी दरगाह बनी।


 इन पीरबाबा के बारे में कोई विशेष कुछ तो नहीं जानता है लेकिन मौखिक कथाएं बहुत सी है। लोगों की आस्था है कि इस दरगाह पर आकर सच्चे मन से अगर कोई कुछ भी मांगता है तो उसके मन की मुराद बाबा जरूर पूरी करते है लेकिन मुराद पूरी होने के बाद उसे बाबा की मन्नत उतरनी पड़ती है अगर कोई मन्नत पूरी होने के बाद मन्नत उतारने जहां नहीं आता है तो उसका बहुत अनिष्ट हो जाता है। बाबा की दरगाह से बेओलादों की झोलियां भरी है जबकि कंगाल साहूकार बनते देखे गए हैं। 


लोगों की इस दरगाह में असीम आस्था है और लोग जहां पर भंडारों का भी आयोजन करते है। लोगों का मानना है कि यह दरगाह आज तक तवी नदी में इसलिए नहीं डूबी है कि आज भी बाबा इस दरगाह पर विराजमान है जबकि कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि उन्हें आज भी बाबा सांई रोडा का घोड़ा इस दरगाह के पास बंधा हुआ नजर आता है। हालांकि ये लोगों की आस्था है पर कैमरे पर ऐसी बाते बोलने से लोग कतरा रहे थे। 


तवी के बीच बनी यह दरगाह ऐसे स्थान पर है जहां से एक तरफ मां बावे वाली का मंदिर नजर आता है तो दूसरी तरफ जामवंत गुफा मंदिर जबकि तीसरी तरफ ऐतिहासिक मुबारक मंडी के खंडहर होते ढांचे पहाड़ी पर नजर आते है। दरगाह के चारों तरफ सूखी तवी नदी है जबकि ठंडी हवाएं हर समय दरगाह में विचरती रहती है और इन हवाओं का वेग हर समय वहां पर महसूस किया जा सकता है। कहते है कि चाहे कितना भी तूफान आये आंधी चले इस दरगाह में जलने वाला चिराग कभी बुझता नहीं है चाहे उसमें तेल कितना भी कम क्यों न हो। वो हर समय जलता हुआ ही दिखाई देता है।


लेकिन जब मैं  इस दरगाह पर पहुंचा तो वहां पर एक अलग से सकून का एहसास हुआ और किसी अदृष्य शक्ति के वहां पर होने का एहसास हुआ। जो लोगों की बातों पर विश्वास करने के लिए मानों मजबूर कर रही हो और ऐसे संकेत दे रही हो कि जो लोग कह रहे है वहीं इस स्थान का एक मात्र सच है। आज इस दरगाह की देखरेख का जिम्मा औकाफ ट्रस्ट के पास है पर दरगाह पर ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगता हो कि ट्रस्ट ने जहां पर कुछ निर्माण करवाया या आने वाले भक्तों के लिए किसी प्रकार की कोई सुविधा की हो। जहां तक कि दरगाह में पीने के पानी तक की व्यवस्था औकाफ ट्रस्ट नहीं कर पाया है।  


लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू

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