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Sant Kabir Ke Dohe In Hindi | प्रसिद्ध Kabir Das ke dohe हिंदी अर्थ सहित

 दोहा – 01

 धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


heere dheere re mana, dheere sab kuch hoye mali seenche so ghara, ritu aaye phal hoye


Dheere dheere re mana, dheere sab kuch hoye
mali seenche so ghara, ritu aaye phal hoye


अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि किसी भी कार्य को पूरा होने के लिए एक उचित समय सीमा की आवश्यकता होती है, उससे पहले कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिए हमे अपने मन में धैर्य रखना चाहिए और अपने काम को पूरी निष्ठा से करते रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पे - यदि माली किसी पेड़ को सौ घड़ा पानी सींचने लगे तब भी उसे ऋतू आने पर ही फल मिलेगा। इसलिए हमे धीरज रखते हुए अपने कार्य को करते रहना चाहिए, समय आने पर फल जरूर मिलेगा।



दोहा – 02

 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

Bura Jo Dekhan Main Chala, Bura Naa Milya Koye Jo Munn Khoja Apnaa, To Mujhse Bura Naa Koye


Bura Jo Dekhan Main Chala, Bura Naa Milya Koye
Jo Munn Khoja Apnaa, To Mujhse Bura Naa Koye


अर्थ: - कबीर दस जी कहते है कि जब मै इस दुनिया में लोगो के अंदर बुराई ढूंढ़ने निकला तो कही भी मुझे बुरा व्यक्ति नहीं मिला, फिर जब मैंने अपने अंदर टटोल कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा व्यक्ति इस जग में और कोई नहीं है।अथार्त हमें दूशरो के अंदर बुराई ढूंढ़ने से पहले खुद के अंदर झाक कर देखना चाहिए और तब हमे पता चलेगा कि हमसे ज्यादा बुरा व्यक्ति इस संसार में और कोई नहीं है।


दोहा – 03

 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।


Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy, Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.


Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy,
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.


अर्थ: - कबीर जी सच्चे ज्ञानी की परिभासा देते हुए कहते है की इस दुनिया में न जाने कितने लोग आये और मोटी मोटी किताबे पढ़ कर चले गए पर कोई भी सच्चा ज्ञानी नहीं बन सका। सच्चा ज्ञानी वही है, जो प्रेम का ढाई अक्छर पढ़ा हो - अथार्त जो प्रेम का वास्तविक रूप पहचानता हो। इस जगत में बहुत से ऐसे लोग है जो बड़ी बड़ी किताबे पढ़ लेते है फिर भी वे लोग प्रेम का सही अर्थ नहीं समझ पते है।




दोहा – 04

 जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।


jaati na poochho saadhu kee, poochh leejiye gyaan, mol karo taravaar ka, pada rahan do myaan.


Jaati Na Poochho Saadhu Kee, Poochh Leejiye Gyaan, 
Mol Karo Taravaar Ka, Pada Rahan Do Myaan.


अर्थ: - ज्ञान का महत्वा धर्म से कही ज्यादा ऊपर है इसलिए किसी भी सज्जन के धर्म को किनारे रख कर उसके ज्ञान को महत्वा देना चाहिए। कबीर दस जी उदाहरण लेते हुए कहते है कि - जिस प्रकार मुसीबत में तलवार काम आता है न की उसको ढकने वाला म्यान, उसी प्रकार किसी विकट परिस्थिती में सज्जन का ज्ञान काम आता है, न की उसके जाती या धर्म काम आता है।



दोहा – 05

 जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।


Jin Khoja Tin Paiya, Gahare Paanee Paith. Main Bapura Boodan Dara, Raha Kinaare Baith.


Jin Khoja Tin Paiya, Gahare Paanee Paith.
Main Bapura Boodan Dara, Raha Kinaare Baith.


अर्थ :- जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.


दोहा – 06

 अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


ati ka bhala na bolana, ati kee bhalee na choop, ati ka bhala na barasana, ati kee bhalee na dhoop.


Ati Bhala Na Bolna, Ati Ki Bhali Na Chup, 
Ati Ka Bhala Na Barasna, Ati Ki Bhai Na Dhup


अर्थ: - कबीर जी उदाहरण लेते हुए बोलते है कि जिस प्रकार जरुरत से ज्यादा बारिस भी हानिकारक होता है और जरुरत से ज्यादा धुप भी हानिकारक होता है - उसी प्रकार हम सब का न तो बहुत अधिक बोलना उचित रहता है और न ही बहुत अधिक चुप रहना ठीक रहता है। अथार्थ हम जो बोलते है वो बहुत अनमोल है इसलिए हमे सोच समझ कर काम सब्दो में अपने बातो को बोलना चाहिए।



दोहा – 07

 दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।


Durlabh Manush Janam Hey, Deh Na Baarahambar Taruvar jyon patta jhadey, bahuri na laage dhar.


Durlabh Manush Janam Hey, Deh Na Baarahambar
Taruvar jyon patta jhadey, bahuri na laage dhar.


अर्थ :- इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता ;झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।




दोहा – 08

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।


Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahmana  Aapas Mein Dou Ladee Ladee Mue, Bhed Na Kou Jaana


Hindu Kahe Mohi Ram Piyara Turk Kahe Rahmana
Aapas Mein Dou Ladee Ladee Mue, Bhed Na Kou Jaana


अर्थ :- कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।




दोहा – 09

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।


Kabir Lahari Samand Kee, Moti Bikhare Aaee.  Bagula Bhed Na Jaanee, Hansa Chunee-Chunee Khaee.


Kabir Lahari Samand Kee, Moti Bikhare Aaee. 
Bagula Bhed Na Jaanee, Hansa Chunee-Chunee Khaee.


अर्थ :- कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।



दोहा – 10

कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।

ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।


Kabir Kaha Garabiyo, Kaal Gahe Kar Kes. Na Jaane Kahaan Maarisee, Kai Ghar Kai Parades.


Kabir Kaha Garabiyo, Kaal Gahe Kar Kes. 
Na Jaane Kahaan Maarisee, Kai Ghar Kai Parades.


अर्थ :- कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.



दोहा – 11

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।


Tinka Kabhu Na Nindiye Jo Payan Tar Hoy. Kabahun Ud Aankhin Pare, Pir Ghaneree Hoy.


Tinka Kabhu Na Nindiye Jo Payan Tar Hoy.
Kabahun Ud Aankhin Pare, Pir Ghaneree Hoy.


अर्थ :-  कबीर दास जी कहते हैं, पांवो के नीचे आने वाले छोटे से तिनके की निंदा कभी मत करो, क्योकि यदि वह उड़कर आपकी आँख में आ गिरे तो असहनीय पीड़ा देता है | इसी प्रकार किसी भी प्राणी निंदा व् उपहास मत करो क्योकि अपना समय आने पर वही प्राणी आपको असहनीय पीड़ा दे सकता है |



दोहा – 12

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।


Mala Pherat Jug Gaya, Phira Na Maan Ka Pher Kar Ka Manka Daari Ke Maan Ka Manka Pher.


Mala Pherat Jug Gaya, Phira Na Maan Ka Pher,
Kar Ka Manka Daari Ke Maan Ka Manka Pher.


अर्थ :- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो.



दोहा – 13

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।


Dosh Parae Dekhi Kari, Chala Hasant Hasant, Apane Yaad Na Aavee, Jinaka Aadi Na Ant.


Dosh Parae Dekhi Kari, Chala Hasant Hasant, 
Aapne Yaad Na Aavee, Jinaka Aadi Na Ant.


अर्थ :- यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.



दोहा – 14

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।


Nindak Niyare Rakhiye Angan Kuti Chavay Bin Paani Sabun Bina Nirmal Kare Subhay


Nindak Niyare Rakhiye Angan Kuti Chavay 
Bin Paani Sabun Bina Nirmal Kare Subhay 


अर्थ: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।



दोहा – 15

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।


Kabira Khada Bazar Mein, Mange Sabki Khair Na Kahu Se Dosti, Na Kahu Se Bair


Kabira Khada Bazar Mein, Mange Sabki Khair 
Na Kahu Se Dosti, Na Kahu Se Bair!


अर्थ:- इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं, कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्‍ती नहीं तो दुश्‍मनी भी न हो! 



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