Ziarat Peer Baba Kanju Sahib Kunjwani, Jammu
जम्मू शहर के प्रवेश द्वार कुंजवानी (Kunjwani) में जम्मू-पठानकोट नेशनल हाइवे पर स्थित पीर बाबा कांजू साहिब जी ( Peer Baba Kanju Sahib ) की दरगाह आज लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है। यहां पर हर धर्म के लोग आकर अपने दुखों से निजात पाते है और पीर बाबा को सजदा करते है। कहते है कि करीब 300 वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक स्थानीय निवासी नबी बख्श को रात में स्वपन आया और स्वपन में एक फकीर ने उन्हें इस स्थान पर तालाब की खुदाई करने को कहा। नबी बख्श जब सुबह उठे तो उन्होंने इसे अपने मन का वहम समझकर टाल दिया। लेकिन कुछ दिन उपरांत फिर वही फकीर उनके स्वपन में आये और फिर से उन्हें इस स्थान पर तालाब की खुदाई करवाने को कहा। इस बार नबी बख्श समझ गए कि यह जरूर कोई पीर फकीर है और उनकी बात को मानते हुए उन्होंने इस स्थान पर तालाब की खुदाई शुरू करवा दी। कुछ दिन की खुदाई के उपरांत नबी बख्श के पास मजदूरों को देने के लिए पैसे नहीं बचे और उन्होंने खुदाई का काम बंद करवा दिया। फिर उनके स्वपन में फकीर आये और बोले बेटा मैं जानता हूं कि तेरे पास पैसे नहीं है पर तूं चिंता न कर मजदूरों को बोलना कि वो तालाब बनने तक रोजाना काम करें और शाम को इसी तालाब की मिट्टी से उन्हें उनकी मजदूरी मिल जाया करेगी। नबी बख्श ने फकीर की बात का सम्मान करते हुए मजदूरों को काम पर लगा दिया और कहा कि जैसे ही उनका काम रोज का समाप्त होगा उन्हें उनकी मजदूरी इसी तालाब की मिट्टी से मिल जाया करेगी। मजदूरों ने काम शुरू कर दिया और जैसे ही शाम को काम पूरा हुआ तो उन्हें उनकी मजदूरी उसी तालाब की मिट्टी से मिल गई। ऐसे कई दिनों तक काम चलता रहा और मजदूरों को उनकी मजदूरी मिट्टी से मिलती रही लेकिन अचानक फिर उन्हें मजदूरी मिलना बंद हो गई। लेकिन मजदूर फिर भी काम करते रहे। कहते है कि पुंछ से पुरमंडल जा रहे एक व्यक्ति के स्वपन में वहीं फकीर आये और उन्हें कहा कि उसे रास्ते में एक स्थान पर तालाब की खुदाई का काम लगा हुआ मिलेगा और इस खुदाई को करवा रहे उस बजुर्ग जिनका नाम नबी बख्श है से जाकर कहना कि तूं चिंता न कर इस स्थान के पास ही एक बड़ा पत्थर पड़ा है वो उस पत्थर को हटाये तो उसे उसके नीचे से मजदूरों की सारी मजदूरी मिल जाएगी। कहते है कि पुंछ से पुरमंडल की तरफ से आ रहे उस व्यक्ति के मन में लालच आ गया और उसने इस स्थान पर आकर स्वयं ही उस पत्थर को हटाया पर उसे उसके नीचे कुछ नहीं मिला। लेकिन फकीर संदेश वो दे या न दें इसी दुविधा से फंस गया। फिर आखिरकार उस व्यक्ति ने नबी बख्श को संदेश देने का विचार किया और उनसे मुलाकात की। उस व्यक्ति ने फकीर के स्वपन में आने की बात नबी बख्श को बताई और आगे पुरमंडल की तरफ चला गया। लेकिन उसके जाने के बाद जैसे ही नबी बख्श ने उस पत्थर को हटाया तो उसे उसके नीचे सिक्कों के रूप में मजदूरों को देने के लिए मजदूरी मिल गई। उसने वो मजदूरी मजदूरों में बांट दी और काम आगे बढ़ने के साथ आखिरकार तालाब बनकर तैयार हो गया। फिर लोग उस तालाब में स्नान करके उस पत्थर को माथा टेकने लगे। जबकि नबी बख्श भी उस पत्थर की सेवा फकीर के रूप में करते हुए खुदा को प्यारे हो गए। उनके बाद उनका बेटे मोहम्मद बख्श उस स्थान पर सेवा करने लगा।
कहते है कि जब महाराजा प्रताप सिंह का राज आया तो
महाराजा प्रताप सिंह (Maharaja Pratap Singh) जब इस स्थान से गुजरकर पुरमंडल जाने लगे तो उनका घोड़ा जहां पर आकर बेकाबू हो
गया और घोड़े ने महाराजा को नीचे गिरा दिया। फिर उसके बाद जब भी महाराजा
प्रताप सिंह इस स्थान से गुजरते तो घोड़ा उन्हें नीचे गिरा देता। आखिरकार
महाराजा प्रताप सिंह ने संतों को अपनी समस्या बताई तो संतों ने उनके साथ इस
स्थान पर आकर उन्हें बताया कि जहां पर पीर बाबा कांजू का स्थान है। महाराज आप
इस स्थान पर उनकी जियारत का निर्माण करवाये। संतों की बात उनके बाद महाराजा
प्रताप सिंह ने इस स्थान पर एक टीले में रखे गए पत्थर पर जियारत का निर्माण
करवाया और करीब 374 कनाल भूमि नबी बख्श के बेटे मोहम्मद बख्श के सपुर्द करके
उसे इस दरगाह का सेवादार नियुक्त कर दिया।
कहते है कि उसके बाद महाराजा जब भी इस स्थान से गुजरते वो इस जियारत पर माथा टेककर ही आगे जाते थे। धीरे धीरे यह जियारत लोगों में प्रसिद्ध होने लगी। पीर बाबा काजू जी के चमत्कार व आर्शिवाद से लोगों के दुखों का निवारण होने लगा। दरगह को लेकर अब मान्यता है कि इस तालाब में आकर स्नान करने पर चरम रोग समाप्त हो जाता है जबकि जिस व्यक्ति का बुखार ठीक न होता हो वो पीर बाबा के स्थान से एक गीटी गले में डलवाये तो उसका बुखार ठीक हो जाता है। जो बच्चा मिट्टी खाना न छोड़ता हो उसे पीरबाबा के स्थान की चुटकी भर मिट्टी खिलाने से वो मिट्टी खाना छोड़ देता है। अगर किसी के शरीर पर मोके अधिक हो और वो ठीक न होते हो तो पीर बाबा के चिराग से तेल लेकर लगाने पर वो ठीक हो जाते है। जबकि इस दरगार पर सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। कहते है कि अगर कोई सड़क पर चलते हुए भी पीर बाबा का ध्यान करके उनसे कुछ मांगता है तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
-जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि अज भी पीर बाबा कांजू जी कई लोगों को दर्शन देते है जबकि कुछ वर्ष पूर्व डिगियाना निवासी एक पंडित जी ने पीरबाबा की दरगाह के पास दुकान खोली तो उन्हें साक्षात पीर बाबा ने दर्शन दिए। पंडित जी पीर बाबा के दर्शन कर इस कदर डर गए वो दुकान बंद करके ही चले गए लेकिन कहते है कि उसके बाद उन पंडित जी ने बड़ी तरक्की की और उनके परिवार में आज सुख और समृद्धि की वास है।
आज पीर बाबा कांजू साहिब ( Peer Baba Kanju Sahib ) की दरगाह पर हर वीरवार को हजारों लोग हाजिरी लगाते है और अपने मन की मुरादे पूरी करते है। इस दरगाह में पीर बाबा की जियारत के पास एक अन्य फकीर की कब्र भी है जो कि पीर बाबा कांजू की सेवा करते हुए लोगों की तकलीफों को दूर करते थे और करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व अपना शरीर छोड़ने से पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें जियारत के पास ही दफनाया जाएं और उनका शरीर छोड़ने के बाद उन्हें जियारत के पास ही दफन किया गया। आज भी नबी बख्श के परिवार की सातवीं पीढ़ी इस स्थान पर सेवा करती है जबकि वर्ष 2003 में इस दरगाह का अधिकार औकाफ ट्रस्ट ने अपने अधिकार में ले लिया। उसके बाद औकाफ ने इस दरगाह का विकास किया और आज इस दरगाह को एक सुंदर रूप प्रदान किया गया है जो लोगों की आस्था को और मजबूत करता है। अब दरगाह के साथ एक मस्जिद भी औकाफ द्वारा बना दी गई है ताकि मुस्लिम समुदाय के लोग यहां आकर नमाज अता कर सकें। जबकि तालाब पूरी तरह से सूख चुका है और इस तालाब के संरक्षण को लेकर कई विभाग आकर सर्वे तो कर चुके है लेकिन अभी तक तालाब के संरक्षण को लेकर कुछ नहीं किया गया है। इस तालाब के कारण ही इस क्षेत्र का नाम कुंजवानी तालाब पड़ा जबकि पीर बाबा कांजू जी के नाम से ही इस पूरे क्षेत्र का नाम कुंजवानी पड़ा है।
लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू
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