करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है और
पंचांग के अनुसार इस वर्ष 24 अक्टूबर, रविवार को कार्तिक मास की
कृष्ण पक्ष की चतुथी है . हिंदू धर्म में करवा चौथ के व्रत का विशेष महत्व
है. । इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है।
साथ ही अच्छे वर की कामना से अविवाहिता स्त्रियों के करवा चौथ व्रत रखने की भी
परम्परा है। यह पर्व पूरे उत्तर भारत में ज़ोर-शोर से मनाया जाता है।
करवा चौथ व्रत के नियम
1. यह व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू कर चांद निकलने तक रखना चाहिए और चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इसको खोला जाता है।
2. शाम के समय चंद्रोदय से 1 घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।
3. पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
करवा चौथ पर भूलकर भी न करें यह काम
दिन घर में शांति और सौहार्द का वातावरण बनाए रखना चाहिए। पारिवारिक कलह और द्वेष से बचें। पति-पत्नी को आपसी मनमुटाव से खासतौर पर बचना चाहिए। मान्यता है कि यदि पति-पत्नी इस तिथि में झगड़ते हैं तो पूरे साल ऐसी परिस्थितियां बनती रहती हैं जिनसे आपस में मनमुटाव होता रहता है।
करवा चौथ की व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha)
करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला - व्रत तोड़ लो; चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया।
करवा चौथ चंद्रोदय समय : रात्रि- 08 बजकर 07 मिनट.
24 अक्टूबर 2021 पंचांग (Panchang 24 October 2021)
विक्रमी संवत्: 2078
मास पूर्णिमांत: कार्तिक
पक्ष: कृष्ण
दिन: रविवार
तिथि: चतुर्थी - 29:46:02 तक
नक्षत्र: रोहिणी - 25:01:58 तक
करण: बव - 16:24:27 तक, बालव - 29:46:02 तक
योग: वरियान - 23:32:34 तक
सूर्योदय: 06:27:12 AM
सूर्यास्त: 17:43:11 PM
चन्द्रमा: वृषभ राशि
द्रिक ऋतु: वर्षा
राहुकाल: 16:18:41 से 17:43:11 तक (इस काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया
जाता है)
शुभ मुहूर्त का समय, अभिजीत मुहूर्त - 11:42:40 से 12:27:43 तक
दिशा शूल: पश्चिम
अशुभ मुहूर्त का समय -
दुष्टमुहूर्त: 16:13:03 से 16:58:07 तक
कुलिक: 16:13:03 से 16:58:07 तक
कालवेला / अर्द्धयाम: 11:42:40 से 12:27:43 तक
यमघण्ट: 13:12:47 से 13:57:51 तक
कंटक: 10:12:32 से 10:57:36 तक
यमगण्ड: 12:05:12 से 13:29:41 तक
गुलिक काल: 14:54:11 से 16:18:41 तक
करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि (Karwa Chauth Pujan Vidhi)
1. सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफ़ाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. यह व्रत उनको संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए।
3. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें।
4. पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें। दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी रहना चाहिए, जिससे वह पूरे समय तक जलता रहे।
5. चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए। अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएँ साथ पूजा करें।
6. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
7. चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
8. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।
करवा चौथ में सरगी (Karwa Chauth Sargi)
पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।
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