रक्षाबंधन का पर्व प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है. राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
रक्षाबंधन की पौराणिक एवं चर्चित कथा...
इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री
कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी
साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने
द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध
पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का
प्रसंग मिलता है।
कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।
भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।
भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इस साल पूर्णिमा तिथि 21 अगस्त शाम से शुरू होगी और 22 अगस्त को सर्योदय
पर पूर्णिमा रहेगी. इसलिए 22 अगस्त को ही रक्षाबंधन का त्योहार धूमधाम के
साथ मनाया जाएगा.
लग्न के अनुसार शुभ मुहूर्त
दोपहर -12:00 बजे से 02:12 तक वृश्चिक लग्न
शाम-06:06 बजे से 07:40 तक कुम्भ लग्न
शुभ मुहूर्त है।
चौघड़िया शुभ मुहूर्त
प्रातः 07:53 से 09:29 तक- चंचल
प्रातः09:29 से 12:30 तक- लाभ,अमृत
अभिजित मुहूर्त- 12:09 से 01:05 बजे तक
इस वर्ष रक्षाबंधन पर चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र -मंगल और कुम्भ राशि मे विचरण करेंगे।
राहुकाल -शाम 04:30 से 06:00 बजे तक - अशुभ समय है।
राखी नही बांधे
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ज्योतिशास्त्र के अनुसार अशुभ भद्राकाल में भी राखी बांधना अशुभ माना जाता है।
भद्रा क्यों होती है अशुभ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण ने भद्राकाल मे राखी बंधवाई और एक वर्ष में ही रावण का सर्व नाश हो गया।
इसलिए भद्राकाल में भाई को राखी नही बांधनी चाहिए।
पौराणिक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि भद्रा शनिदेव की बहन थी।
भद्रा को ब्रह्मा जी ने श्राप दिया था कि जो भी व्यक्ति भद्राकाल मे शुभ कार्य करेगा उसका परिणाम अशुभ होगा
विशेष :- स्थानीय समयानुसार राहुकाल, चौघड़िया, शुभ समय में अंतर सम्भव है, अतः अपने ज्योतिष मित्र से सलाह लेना हितकर रहेगा।
अरविन्दर सिंह ' शास्त्री '
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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