मंदिरों के शहर जम्मू में पीर पैगम्बरों की असंख्य दरगाहें ऐसी है जहां पर लोग नत्मस्तक होकर अपने कष्टों का निवारण करते है। इन्हीं में से एक दरगाह है बाबा पंज पीर की। -
जम्मू के मुख्य बस स्टैंड से जम्मू-नगरोटा के पुराने पर मार्ग पर करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर व हरि पैलेस से करीब 300 मीटर आगे यानि शहर की सीमा से करीब 300 मीटर आगे नगरोटा की तरफ हाइवे पर ही मांडा क्षेत्र में एक मनमोहक दरगाह स्थित है जिसे पंज पीर की दरगाह कहा जाता है। आपकों बता दें कि यह यह दरगाह पीर रहमत अली शाह की है लेकिन इसे पंज पीर क्यों कहा जाता है इसके साथ एक विशेष कहानी जुड़ी हुई है। कहते है कि बगदाद से करीब 300 वर्ष पूर्व पांच भाई आये जो कि खुदा की इबादत करते रहते थे। उनमें से सबसे बड़े भाई पीर बाबा रहमत शाह अली थे। इन पांचों भाईयों ने मांडा के जंगलों में तवी नदी के किनारे एक पहाड़ी पर खुदा की इबादत करना शुरू कर दी और सैंकड़ों वर्षों तक वो इस स्थान पर खुदा की इबादत में लील रहे। फिर एक समय ऐसा आया कि अचानक से पांचों भाई जिस स्थान पर ध्यान लगाते थे उस स्थान पर पांच पत्थर बन गए जबकि इस स्थान पर चिराग जलना भी शुरू हो गया। फिर जम्मू कश्मीर का राजपाठ जब महाराजा हरि सिंह को मिला तो इस स्थान से मात्र 300 मीटर की दूरी पर अपने महल का निर्माण करवाया जिसे आज हरि पैलेस कहा जाता है।
कहते है कि महाराजा हरि सिंह अपने महल में जब सोते थे तो उनके पांव इन पांच पीरों की तरफ होते थे ऐसे में उन्हें रात को स्वपन आने लगे और स्वपन में आकर एक व्यक्ति उन्हें कहता राजन आपके पांव जिस दिशा में वहां पर हम खुदा की इबादत करते है आप अपने पांव दूसरी तरफ करके सोया करें। लेकिन महाराजा ने अपने स्वपन को आया गया समझ कर टालते रहे लेकिन एक दिन जब महाराजा हरि सिंह को फिर से स्वपन आया और वो बिस्तर से नीचे गिर गए। इसके बाद उन्होंने अपने सिपाहियों को बुलाया और उस स्थान पर भेजा जिसे लेकर स्वपन में आने वाले व्यक्ति ने बताया था। सिपाहियों ने जब उस स्थान पर जाकर देखा तो जंगल में एक चिराग जल रहा था और इसके पास पांच पत्थर थे। उन्होंने आकर महाराजा को बताया तो महाराजा समझ गए कि उस स्थान पर जरूर किसी पीर फ़क़ीर का निवास है ऐसे में उन्होंने उस दिन के बाद अपने सोने की दिशा को बदल दिया फिर उन्हें कभी स्वपन नहीं आया। -
कहते है कि इस स्थान पर तब भारी संख्सा में जंगली जानवर व सांप आदि होते थे जिस कारण से इस स्थान पर कोई नहीं आता जाता था। जबकि जिस स्थान पर पांच पीर खुदा की इबादत करते थे वहां आसपास बड़े बड़े कांटे हुआ करते थे। धीरे धीरे समय बीता और नगरोटा को जाने वाली सड़क का निर्माण इस स्थान के पास के हुआ जिससे थोड़े बहुत लोगों का आवागमन इस दिशा में शुरू हुआ पर यह स्थान सड़क से थोड़ा हटकर था और जहां जाने के लिए भी कोई सही रास्ता नहीं था ऐसे में लोग इस स्थान पर नहीं जाते थे। कोई इक्का दुक्का लोग ही जहां जाते थे। जब लोगों की संख्या हजारों में हो गई तो वर्ष 2001 में ओकाफ इस्लामियां ने इस दरगाह को अपने अधिकार में ले लिया।
जबकि 2013 में इस स्थान का सौंदर्यकरण कार्य शुरू हुआ जिसमें आज जहां पर एक पार्क व व्यु प्वाइंट भी बनाया गया है जबकि दरगाह का भी सौंदर्यकरण किया गया है। दरगाह के पीछे जाकर खड़े होकर देखने से तवी पर बना नगरोटा पुल तो दिखाई देता ही है साथ ही मनमोहक तवी और उसके एक किनारे पर स्थित हर की पौड़ी और दूसरी तरफ पहाड़ी पर स्थित हरि पैलेस का मनमोहक नजारा भी दिखाई देता है। श्ऱालुओं को जहां आकर एक अलग से सकून का एहसास होता है। आज लाखों की संख्या में श्रद्धालु जहां पर जुटते है और अपने मन की मुरादें पूरी करके जाते है। जबकि पीर बाबा के स्थान पर आने वाले लोगों ने यहां पर भंडारे आदि करने के लिए एक हाल का निर्माण करवाया और उसके नीचे एक स्टोर नुमा रसोई बनाई गई। ताकि बारिश आदि होने पर वहां पर भंडारा तैयार किया जा सकें।
कहते है आज इस दरगह को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं है और लोगों का मानना है कि पंज पीर की दरगाह पर सच्चे मन से माथा टेकने से उनकी हर मुराद पूरी होती है। जबकि शरीर पर किसी भी प्रकार का अगर कोई निशान या मोका है तो जहां के चिराग से लेकर तेल लगाने से वो ठीक हो जाता है। -
आज यह स्थान जम्मू-नगरोटा-कटड़ा के पुराने पर स्थित है और श्रद्धालुओं के लिए इस स्थान पर अब जाना काफी आसान हो गया है ऐसे में लगातार पीर बाबा पंज पीर की दरगाह पर दिन प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है
लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू
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