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तवी पुल के नीचे छुपा है पीर बाबा ख्वाजा शरफ उल दीन रहमत उल्लाह का रहस्यमय इतिहास

 




जम्मू शहर की इतिहासिक विरासतों की बात करें तो हर क्षेत्र का कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व है जबकि इसके साथ पीर फकीरों व औलयाओं का भी इतिहास जुड़ा हुआ है। लेकिन लोग आज इस इतिहास से पूरी तरह से अंजान है जबकि लिखित दस्तावेजों में इस इतिहास का उल्लेख तो नहीं मिलता है पर मौखिक कथाओं में इतिहास को कुछ लोग आज भी अपने जहन में समेटे हुए है जबकि जिन लोगों के जहन में इतिहास है वो भी अब अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर है। जम्मू में तवी नदी पर बने पहले पुल का भी एक अपना ही इतिहास है और यह इतिहास जुड़ा है पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह के साथ, जिनकी दरगाह आज तवी नदी के किनारे पुल के पास ही बनाई गई है।



कहते है कि करीब 300 वर्ष पूर्व जम्मू में तवी नदी पर जब कोई पुल नहीं था और इस क्षेत्र में लोग भी नहीं रहते थे जबकि पूरा क्षेत्र एक जंगल था तो इस स्थान पर पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह ख्ुादा की इबादत किया करते थे। वो इस क्षेत्र से गुजरने वाले राहगीरों को प्रेम व भाईचारे का संदेश दिया करते थे और वक्त के साथ एक समय ऐसा आया कि वो इस फानी दुनिया को अलविदा कर गए। तो लोगों ने उनकी पार्थिव देह को इसी स्थान पर सर्पुदे खाक कर दिया। फिर जिन लोगों को ज्ञात था वो तो गुजरते समय उन्हें सजदा कर दिया करते थे लेकिन जिन्हें पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह की दरगाह के बारे में जानकारी नहीं थी वो राहगीर ऐसे ही गुजर जाया करते थे। वक्त बीता तो करीब 18वीं शताब्दी में जब तवी नदी पर पुल निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो इसके लिए नदी में पिल्लर बनाने का कार्य शुरू किया गया। मजदूर दिनभर पिल्लर बनाते तो अगले दिन आकर देखते थे कि पिल्लर में डाला गया ईट, पत्थर, चूना आदि नीचे गिरा हुआ है।  

कहते है कि ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। आखिर में पिल्लर का निर्माण करने वाले थक हार गए और लोगों से पूछने लगे कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है तो उस समय एक राहगीर ने पिल्लर का निर्माण करने वाले कारीगरों को बताया कि जिस स्थान पर वो पिल्लर का निर्माण कर रहे है उसके पास पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह की दरगाह है अगर आपका पुल बना तो दरगाह पुल के नीचे आ जाएगी शायद यहीं कारण है कि इस पुल का निर्माण नहीं हो पा रहा हो। कहते है कि उस समय के राजा को जब यह बात ज्ञात हुई तो वो स्वयं पुल निर्माण स्थल पर पहुंचा और राहगीर से बात करके पीर बाबा के बारे में जानकारी ली। राजा ने आदेश दिया कि जिस स्थान पर पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह की दरगाह है वहां पर एक सुंदर जियारत का निर्माण किया जाएं और पुल को ऐसे बनाया जाएं कि जियारत पुल या रास्ते के बीच में न आये। कहते है कि उसके बाद पहले बाबा की जियारत बनाई गई जबकि कारीगरों ने जियारत के पास जो पेड़ था उसे भी वहीं रहने दिया और उपर गुम्बद रूपी छत का निर्माण कर दिया। उसके बाद तवी नदी पर पुल निर्माण का कार्य शुरू हुआ और उस कार्य में कोई विघ्न नहीं पड़ा। उसी दिन से लोगों में पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह को लेकर मान्यता और बढ़ गई और श्रद्धा के साथ उनकी दरगाह पर माथा टेकने आने लगे। कहते है कि इस दरगाह पर कामना करने से हर प्रकार के चरम रोग ठीक होते है जबकि परीक्षा के दिनों में नया पेन लेकर बाबा की दरगाह से उसको लगाकर उससे परीक्षा देने वाला कभी असफल नहीं होता है। आज जम्मू ही नहीं कश्मीर घाटी से भी लोग बाबा की दरगाह पर सजदा करने आते है और उनकी मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर दुआ बाबा के दरबार से पूरी होती है। आज इस दरगाह का रखरखाव ओकाफ इस्लामिया के पास है। यह दरगाह आज के तवी पुल के पास पुल समाप्त होते ही नजर आती है जो कि सड़क से नीचे की तरफ है। यानि तवी पुल पर बने महाराजा हरि सिंह जी के स्टैचु के ठीक सामने जो मस्जिद है उसी मस्जिद के सामने नीचे की तरफ पीर बाबा खवाजा शरफउल दीन रहमत उल्लाह की ऐतिहासिक दरगाह है जहां श्रद्धा से हर धर्म के लोग आकर अपनी मन की मुरादों को मांगते है और पूरा होने पर चादर चढ़ाते है। 


लेखक अश्विनी गुप्ता जम्मू

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