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शराब के सेवन पर सूफ़ीमत, इस्लाम और ईसाई धर्म के नियम और सिद्धांत


सूफ़ीमत और इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, शरीर भले ही अस्थायी हो, लेकिन यह अल्लाह की दी हुई एक अमानत है। इसे इज़्ज़त और देखभाल के साथ संभालना हमारी ज़िम्मेदारी है। शरीर फ़ानी है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम इसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। हमें इसे अल्लाह की राह में इस्तेमाल करना चाहिए और इसकी देखभाल करनी चाहिए ताकि हम अपने रूहानी सफर में आगे बढ़ सकें।

इस्लाम में शराब का सेवन: एक सख्त निषेध

शराब और इस्लामिक शिक्षाएँ

इस्लाम में शराब का सेवन सख्ती से मना (हराम) किया गया है। क़ुरान और हदीस में शराब के शारीरिक और मानसिक नुकसानों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।

1.     रूहानी नुकसान: शराब मन और दिल को धुंधला कर देती है और इंसान की सोचने-समझने की शक्ति को प्रभावित करती है। इससे इंसान अल्लाह की याद और इबादत से दूर हो जाता है। रूहानी जागरूकता के लिए मन का साफ होना ज़रूरी है, और शराब उस जागरूकता को कम कर देती है।

2.     शारीरिक नुकसान: शरीर अल्लाह की अमानत है, और इसकी देखभाल आवश्यक है। शराब पीने से लीवर की खराबी, नशे की लत, और अन्य गंभीर शारीरिक समस्याएँ हो सकती हैं।

3.     नैतिक और सामाजिक नुकसान: शराब का सेवन व्यक्ति की समझ और विवेक को कमजोर करता है, जिससे वह ऐसे काम कर सकता है जो समाज के लिए हानिकारक हो सकते हैं।


क़ुरान के उद्धरण

क़ुरान में स्पष्ट रूप से शराब की निंदा की गई है:

"ऐ ईमान वालो! निश्चय ही शराब, जुआ, मूर्तिपूजा और तीर से भविष्य जानना, शैतान के गंदे कामों में से हैं। इससे बचो ताकि तुम सफल हो सको।"

— (सूरह अल-माइदह, 5:90)


सूफ़ीमत में नशे की धारणा: रूहानी जागरूकता का प्रतीक

सूफ़ीमत में 'नशा' शब्द का उपयोग रूहानी अनुभव के लिए किया जाता है। यह शराब के शारीरिक नशे की बात नहीं करता।

सूफ़ीमत में नशा अल्लाह की मुहब्बत और उसकी याद में मग्न हो जाने की स्थिति को दर्शाता है। जैसे कि मशहूर सूफ़ी कवि रूमी ने अल्लाह के प्रेम के नशे का उल्लेख किया है, जो रूहानी जागरूकता और अल्लाह के साथ जुड़ाव का प्रतीक है।

"यह नशा इबादत, तस्बीह, और अल्लाह की मुहब्बत से आता है, न कि किसी भौतिक पदार्थ से।"


बाइबल में शराब पर दृष्टिकोण: शारीरिक और रूहानी शुद्धता

रूहानी और शारीरिक शुद्धता का महत्व

बाइबल में यह बताया गया है कि जो कुछ इंसान खाता है, वह उसकी आत्मा या रूह को प्रभावित नहीं करता, बल्कि उसके विचार, बोल, और कर्म उसकी रूहानी शुद्धता को दर्शाते हैं।

"कोई भी चीज़ जो बाहर से आदमी के अंदर जाती है, उसे अशुद्ध नहीं कर सकती, बल्कि जो चीज़ें आदमी के अंदर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं।"

— (मरकुस 7:15-20)


शराब पर बाइबल की चेतावनी

बाइबल शराब के अत्यधिक सेवन की निंदा करती है क्योंकि यह विवेक को कमजोर कर सकता है और गलत आचरण की ओर ले जा सकता है।

"शराब में मत बहको, जो अनियंत्रित जीवन की ओर ले जाती है, बल्कि आत्मा से भर जाओ।"

— (इफिसियों 5:18)


इस्लाम और बाइबल में शराब का परस्पर दृष्टिकोण

इस्लाम: शराब एक निषिद्ध वस्तु

क़ुरान में शराब को शैतान के कामों में से एक बताया गया है और इसे सख्त रूप से हराम घोषित किया गया है।

"शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष डलवा दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे। तो क्या तुम इससे बाज़ आने वाले हो?"

— (सूरह अल-माइदह, 5:91)


बाइबल: सीमित सेवन की अनुमति

बाइबल शराब के सीमित सेवन की अनुमति देती है, लेकिन इसका अत्यधिक सेवन या नशे की स्थिति में आने को गलत मानती है।

"अपने भोजन को आनंद के साथ खाओ, और अपने दिल को खुशी के साथ शराब पीने दो, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे कार्यों से प्रसन्न है।"

— (सभोपदेशक 9:7)


निष्कर्ष: शराब का प्रभाव और रूहानी जीवन

इस्लाम और बाइबल दोनों ही शराब के शारीरिक और सामाजिक नुकसान को स्वीकार करते हैं, हालांकि इस्लाम में इसे पूरी तरह निषिद्ध माना गया है। वहीं, बाइबल सीमित मात्रा में इसके सेवन की अनुमति देती है, लेकिन नशे से बचने की सलाह देती है।

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