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सूफ़ीमत: रूह और जिस्म के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति

 


सूफ़ीमत (Sufism) के अनुसार, रूह (soul) और जिस्म (body) में गहरा अंतर होता है, और यह दोनों इंसान के अस्तित्व के अलग-अलग पहलू हैं। सूफ़ीमत में, रूह और जिस्म के संबंध को समझने से इंसान अपनी असलियत, अल्लाह के साथ ताल्लुक, और जीवन के असली मकसद को समझ सकता है।

1. रूह (Soul):

  • रूह को सूफ़ीमत में इंसान का असल और दिव्य (divine) हिस्सा माना जाता है, जो अल्लाह की ओर से आता है। इसे अल्लाह के नूर (प्रकाश) का एक अंश माना जाता है, और इसका असली मकसद अल्लाह की तरफ वापस लौटना है। रूह अनंत (eternal) होती है और यह उस बुनियादी सच्चाई का प्रतिनिधित्व करती है, जो अल्लाह की ओर इशारा करती है।
  • सूफ़ीमत के मुताबिक, रूह की प्यास और भूख दुनिया की चीज़ों से नहीं मिटती; यह केवल अल्लाह की मुहब्बत, उसकी इबादत, और उसके साथ जुड़ाव से शांत होती है। रूह को समझना और उसकी ज़रूरतों को पहचानना ही सच्चा रूहानी सफर होता है।
  • रूह का मकसद इस फ़ानी दुनिया की बेड़ियों से मुक्त होकर अल्लाह के करीब जाना और उसके साथ एकता में प्रवेश करना होता है। सूफ़ी, इस रूहानी सफर को "फ़ना" (self-annihilation) और "बक़ा" (subsistence in God) के रूप में वर्णित करते हैं।

2. जिस्म (Body):

  • जिस्म इंसान का नश्वर (mortal) हिस्सा है, जो दुनिया के भौतिक (physical) और अस्थायी (temporary) अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। इसे अल्लाह की दी हुई एक अमानत (trust) के रूप में देखा जाता है, जिसका उपयोग इस दुनिया में जीने और रूह को अपनी मंजिल तक पहुँचाने के लिए किया जाता है।
  • जिस्म दुनिया की ज़रूरतों और इच्छाओं से जुड़ा होता हैभूख, प्यास, आराम, भौतिक इच्छाएँ, वगैरह। लेकिन सूफ़ीमत में, जिस्म को सिर्फ एक अस्थायी साधन के रूप में देखा जाता है, जो रूह की सच्ची यात्रा में बाधा डाल सकता है अगर इसे हद से ज्यादा तवज्जो दी जाए।
  • सूफ़ी इस बात पर जोर देते हैं कि इंसान को अपने जिस्मानी इच्छाओं (nafs) को नियंत्रित करना चाहिए ताकि रूह की रूहानी यात्रा पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

3. रूह और जिस्म का ताल्लुक:

  • सूफ़ियों के अनुसार, रूह और जिस्म का ताल्लुक वैसे ही है जैसे एक परिंदा पिंजरे में बंद होता है। रूह पिंजरे में फंसी होती है, यानी जिस्म में, और उसकी आज़ादी का मकसद अल्लाह से मिलन में है।
  • इंसान को अपने नफ़्स (ego) को काबू में रखना पड़ता है ताकि रूह अल्लाह की तरफ बढ़ सके। नफ़्स को नियंत्रित करना और उसके वासना को कम करना, सूफ़ी मार्ग का अहम हिस्सा है। जिस्म की इच्छाओं को त्यागना और खुदा की इबादत करना रूह की तरक्की के लिए जरूरी है।

4. रूह की सफर:

  • सूफ़ीमत में यह माना जाता है कि रूह को इस दुनिया में भेजा गया ताकि वह इम्तेहान (test) से गुजरे और दुनिया के वासनों से खुद को आज़ाद करके अल्लाह के करीब पहुँच सके। इस सफर में इंसान को अपने जिस्म की जरूरतें पूरी करते हुए भी, रूह के असली मकसद से जुड़े रहना होता है।
  • सूफ़ी रास्ते पर चलने वाले "मुरीद" (seeker) अपने शेख (spiritual guide) की रहनुमाई में दुनिया की माया (illusion) से बचकर रूह की पाकीज़गी की तरफ बढ़ते हैं। इस सफर में, इंसान को अपना जिस्मानी अस्तित्व भले ही बनाए रखना पड़ता है, लेकिन उसकी असली तवज्जो रूह की तरक्की और अल्लाह के साथ मिलन पर होती है।

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