कई वर्षों पहले, एक छोटे से गाँव में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उसके नीचे गाँव वाले आराम करते, बच्चे खेलते और बुज़ुर्ग अपनी बातें साझा करते। उस पेड़ को सब ‘गांव का गुरु’ कहते थे, क्योंकि वह वर्षों से सबका साथ निभा रहा था।
गाँव में एक नौजवान लड़का था – अर्जुन। वह हमेशा बेचैन रहता, अपने भविष्य को लेकर परेशान। एक दिन, भारी गर्मी में वह बरगद के नीचे बैठा और बड़बड़ाने लगा, “सब कुछ बेकार है, मेहनत करने का कोई फ़ायदा नहीं, मेरी क़िस्मत ही खराब है।”
वहीं पास बैठे एक बुज़ुर्ग ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटा, इस पेड़ को देखो। क्या तुम जानते हो, इसे बड़ा होने में कितने साल लगे?”
अर्जुन चुप हो गया।
बुज़ुर्ग बोले, “हर दिन यह पेड़ थोड़ा बढ़ा, बारिश सही, धूप सही, तूफ़ान सही—यह कभी नहीं रुका। आज यह इतना बड़ा हो गया कि सब इसे गुरु मानते हैं।”
“तुम्हें भी रोज़ थोड़ा बढ़ना है। हो सकता है आज परिणाम न दिखे, पर हर दिन की मेहनत कल की छांव बनती है।”
अर्जुन की आंखों में चमक आ गई। उसी दिन से उसने अपनी पढ़ाई, काम और सोच को एक नई दिशा दी।
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