एक समय की बात है, एक शांत और दूर-दराज़ गाँव में एक वृद्ध साधु रहते थे। उनका जीवन अत्यंत साधारण था—दिन भर ध्यान, तपस्या और रात में गाँव के बच्चों को ज्ञान की बातें सुनाना।
एक दिन एक युवा उनके पास आया। उसकी आँखों में निराशा थी, चाल में थकावट और मन में अनेक सवाल। उसने साधु से कहा, “बाबा, मुझे कुछ समझ नहीं आता, मैं किस दिशा में जाऊं? जीवन जैसे रुक सा गया है।”
साधु मुस्कराए और बोले, “जब रात सबसे गहरी हो, तभी तारा चमकता है। क्या तुम दीपक को देख सकते हो जब चारों ओर रोशनी हो?”
युवक ने कहा, “नहीं बाबा, रोशनी में दीपक दिखता नहीं।”
साधु ने कहा, “बस वही जीवन है। जब सब कुछ अच्छा हो, तब भीतर की रोशनी की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन जब जीवन अंधकारमय हो, तब वही भीतर का दीपक तुम्हें रास्ता दिखाता है।”
साधु ने एक छोटा दीपक जलाया और युवक के हाथ में रख दिया। उन्होंने कहा, “इस दीपक को मत बुझने देना। ये तुम्हारा विश्वास है, तुम्हारा आत्मबल है।”
युवक ने उस दिन से अपने जीवन की दिशा बदल दी। कठिनाइयाँ आईं, पर वो दीपक—उसका विश्वास—हमेशा जलता रहा।
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