हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस दर्दनाक हमले में करीब 27 से 30 लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकतर निर्दोष नागरिक थे। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है कि क्या इस्लाम ऐसे कामों को बढ़ावा देता है? क्या धर्म के नाम पर की गई हिंसा जायज़ है? इस लेख में हम कुरान और हदीस की रोशनी में समझेंगे कि इस्लाम वास्तव में क्या सिखाता है।
🕊️ क्या इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता है? जानिए कुरान, हदीस और इतिहास की रोशनी में सच्चाई
🕌 इस्लाम की बुनियाद: शांति, दया और इंसाफ
इस्लाम शब्द ही “सलामती” और “समर्पण” से निकला है — खुदा के आगे समर्पण और सभी के लिए अमन का पैग़ाम। इस्लाम का पहला सबक ही है "अमन फैलाओ, भूखों को खिलाओ, सलाम कहो, और रिश्ते जोड़ो।"
कुरान (सूरह अल-मायदा 5:32) फरमाता है:
"जिसने एक निर्दोष इंसान को मारा, ऐसा है जैसे उसने पूरी मानवता की हत्या कर दी। और जिसने एक जान बचाई, उसने पूरी मानवता को बचाया।"
यानि एक मासूम की जान लेना इस्लाम में हराम (निषिद्ध) है।
📖 हदीसों में नबी (ﷺ) की शिक्षाएं:
रसूलुल्लाह ﷺ का पूरा जीवन अमन, माफ़ी, और सहनशीलता की मिसाल है। आपने कभी भी नफ़रत और हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं दिया।
सहीह बुखारी की हदीस:
"सच्चा मुसलमान वह है जिससे दूसरों को जान और माल का कोई खतरा न हो।"
दूसरी हदीस में नबी (ﷺ) ने कहा:
"जो किसी ज़िम्मी (गैर-मुस्लिम नागरिक) को तकलीफ दे, वह मेरी उम्मत में नहीं।"
इससे साबित होता है कि इस्लाम अल्पसंख्यकों की रक्षा करने वाला धर्म है, न कि उन्हें नुकसान पहुंचाने वाला।
⚔️ 'जिहाद' का गलत मतलब क्यों लिया जाता है?
"जिहाद" शब्द को मीडिया और आतंकवादी संगठनों ने गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। इसका असली मतलब है:
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नफ़्स से जिहाद – अपने अंदर की बुराइयों से लड़ना
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इल्म का जिहाद – ज्ञान फैलाना
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कलम का जिहाद – अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना
हथियार उठाकर निर्दोषों की हत्या करना जिहाद नहीं, फितना (अराजकता और बगावत) है।
🌟 नबी-ए-पाक (ﷺ) पर अत्याचार और उनका जवाब
जब मक्का में नबी (ﷺ) पर:
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थूक फेंका गया
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पत्थर मारे गए
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सात साल तक बहिष्कार किया गया
...तो आपने बदला नहीं लिया।
मक्का की फतह के दिन, जब ताक़त आपके पास थी, आपने कहा:
"आज कोई बदला नहीं। सबको माफ किया जाता है।"
यही है इस्लाम का असली चेहरा — माफ़ी, अमन और इंसाफ।
🚫 इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह क्यों नहीं है?
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आतंकवाद इंसानियत के खिलाफ है — और इस्लाम इंसानियत का धर्म है
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निर्दोषों की हत्या कुरान के खिलाफ है
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ज़िम्मियों को तकलीफ देना उम्मत से बाहर कर देता है
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नबी (ﷺ) और उनके अहल-ए-बैत ने ज़ुल्म सहा, कभी किया नहीं
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इस्लाम में माफ करना और दया सबसे ऊंचा दर्जा रखती है
इस्लाम आतंकवाद का धर्म नहीं, अमन का पैग़ाम है।
धर्म के नाम पर की गई हिंसा इस्लाम की नहीं, इंसानियत की तौहीन है।
"लोगों को खौफ नहीं, मोहब्बत महसूस होनी चाहिए जब वो 'मुसलमान' नाम सुनें।"
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